(नागपत्री एक रहस्य-41)

बढ़ती उम्र के साथ लक्षणा की सुषुप्त शक्तियां धीरे-धीरे जागृत होने लगी, जिसका एहसास प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे भी होने लगा था, लेकिन उन्हें वह महज इत्तफाक समझकर अभी तक टालते आ रही थी, लेकिन कदम्भ की सवारी के बाद जब संपूर्ण ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर वह वापस मंदिर में लौटी, तब से उसका मन वास्तविक शक्तियों को लेकर और भी व्यग्र हो उठा, उसके सवालों के जवाब सही रूप में नहीं मिल पा रहे थे।लक्षणा जान चुकी थी कि अब उनके सवालों के जवाब शायद आचार्य चित्रसेन जी ही दे पाएंगे, क्योंकि कदम्भ जैसे चमत्कारी अश्व को पुकारने और उससे आदेश देने वाला कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता।




यह सोचकर लक्षणा निकल पड़ी अपने सवालों की खोज में, और सीधे पहुंची आचार्य चित्रसेन जी के पास, लेकिन क्या करें और क्या पूछे?? जब वे प्रश्न ज्ञात नहीं तो जवाब कैसे मिले??महा जिज्ञासा प्रकट करना तो भावनाओं को प्रकट करने जैसा है, सही उत्तर के लिए एक वास्तविक प्रश्न मन मस्तिष्क में होना जरूरी है, जिसे समस्त व्यक्तित्व के समक्ष रखने पर ही जवाब मिलेगा।
       यह सोचकर लक्षणा जैसे ही मंदिर में प्रवेश करती है पूर्व की ही तरह, एक विशेष आभामंडल उसे अपनी और आकर्षित करता नजर आ रहा था, वह मन की उलझन लिए चली जा रही थी,और जैसे ही उन्होंने मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश किया, चित्रसेन जी महाराज सामने जो ध्यान की मुद्रा में थे, मुस्कुराते हुए जागे और कहने लगे। 



लक्षणा मैं जानता था कि आप अवश्य लौट कर आएंगे, क्योंकि शक्ति के संचार को अति वेग से भी बहुत देर तक दबाकर नहीं रखा जा सकता, प्रश्न की आवश्यकता नहीं है जिज्ञासा प्रकट करिए। कुछ का समाधान मैं करूंगा और कुछ के लिए आप खुद को प्रयत्न करना होगा । 
            मैं तो खुद एक साधक हूं, इस सृष्टि के रचियता ने शक्तियों को बिखरने के साथ-साथ उसके संचालन और अनुपालन की जिम्मेदारियां अलग अलग व्यक्तित्व को अंश रूप में प्रदान किए हैं, संपूर्णता और सार दोनों ही अपने पास सुरक्षित रखें, इन्हें प्राप्त कर पाना किसी के भी बस में नहीं है। 



हां, दर्शन कर लाभ लेना यह किसी के नियति में जरूर हो सकता है और शायद मैं भी उन दर्शन शास्त्रियों में से एक हूं,
लेकिन आभारी हूं कि वह शक्तियाँ यथार्थ रूप से मुझे सामर्थ्य प्रदान करती हैं , क्योंकि शायद धरोहर के रूप में मेरे पास रखी हुई है। मुझे लगता है तुम्हें एक बार फिर कदम्भ की सवारी कर आना चाहिए। 
        लेकिन हां, तुम्हें एक बात बता देना चाहूंगा, कि कदम्भ कोई अश्व मात्र नहीं है, उसे सामान्य घोड़ा समझने की भूल ना करना। वह मन की गति से परे वायु और प्रकाश से भी तेज गति से संपूर्ण ब्राह्मण को एक पल में विचरण कर लेने वाली शक्ति है , या उन नाग माताओं के अश्व श्रेणी का प्रमुख है, जिस पर किसी भी शक्ति का प्रभाव नहीं होता। 



इस सृष्टि के विनाश के पश्चात भी बने रहने वाले उत्तम प्राणियों में से एक है वो जिन्होंने ना जाने ही कितने ही ब्रह्मांड को बनते हैं और मिटते देखा, फिर हम तो मात्र चंद मिनटों और सालों की दुनिया में जीते हैं। यदि उसे प्रणाम कर उसकी सवारी करते समय किसी प्रश्न का जवाब भी पूछना चाहो तो संपूर्ण सवालों के जवाब देने में भी सक्षम है।
               और हां एक बात और कदम्भ मुझसे कई ज्यादा तुम्हारी बात मानेगा, क्योंकि तुम्हारे भीतर नाग माता की शक्ति निहित है, यहां ही नहीं संसार के जिस कोने से आज उसे पुकारोगे वह तुरंत प्रकट हो जाएगा, बिना कोई समय और स्थान को देखें।



क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि उन्हें संसार की कोई भी शक्ति चाहे वह असुरी, ईश्वरीय, यक्ष, गंधर्व, नागशक्ति या अन्य कोई पराशक्ति ही क्यों ना हो, किसी की भी सीमाओं के बंधन से मुक्त है वह, ना उसे आने जाने से कोई रोक सकता है, और ना ही कोई गलती से भी उसके ऊपर कोई शक्ति प्रहार कर सकता है, जो भी यह  दुस्साहस करेगा खुद उसकी शक्ति ही उसका ही नाश कर देगी, इसलिए मैं चाहूंगा कि आप खुद कदम्भ का स्मरण करें। 
               मंदिर के दक्षिण और बने हुए दीये की आकृति के पास जाकर उसे पुकारे, क्योंकि वह स्थान ही उसकी पुकार के लिए उत्तम है, कहते हुए उन्होंने दक्षिण द्वार की ओर इशारा किया, और बोले जहां आवश्यकता हो, आप मेरा भी स्मरण कर मुझे प्रत्यक्ष रूप से बुला सकते हो।



आचार्य चित्रसेन जी की यह बात सुन लक्षणा मंदिर के दक्षिण द्वार की और प्रवेश करती है, और उस दिये के पास ध्यान की मुद्रा में बैठकर कदम्भ अश्व का मन ही मन स्मरण करती है। कुछ ही समय में कदम्भ मंदिर के दक्षिण द्वार जहां लक्षणा  कदम्भ का स्मरण कर रही थी, लक्षणा के सामने उपस्थित होता है , लक्षणा कदम्भ को प्रणाम करती है। चूंकि कदम्भ हम मनुष्य की तरह बोलने की भी शक्ति रखता था। 
                 कदम्भ मात्र एक अश्व नहीं हैं ,वह हम मनुष्यों की बातें बखूबी समझता और मनुष्य की ही तरह वह बातें भी करता हैं ,क्योंकि ईश्वरी और नाग कृपा कदम्भ के ऊपर थी, कदम्भ लक्षणा से कहता है कि मुझे पता था कि तुम एक बार जरूर मेरी सवारी करने के लिए यहां उपस्थित होंगी, और आज वह दिन आ गया जब तुम यहां आई हो।


कदम्भ अश्व, लक्षणा से कहता है कि कहो लक्षणा तुमने मुझे किस लिए बुलाया है, तुम मुझसे क्या चाहती हो?
और तुम्हें कहां की सवारी करना है तुम मुझसे कहो, मैं तुम्हें उस जगह लेकर चलूंगा। तब लक्षणा कदम्भ से कहती है कि मुझे हमेशा मेरे स्वप्न में एक नागपत्री दिखाई देती है।
और मेरे दिमाग और मेरे मन में उस नागपत्री को लेकर बहुत सारे प्रश्न है, लेकिन मुझे उनके उत्तर नहीं मिल रहे हैं। 
                 मुझे जो कुछ भी सपने में दिखाई देता है, मुझे उस और विचरण करना है, और यह स्वप्न मुझे क्यों दिखाई देते हैं और आखिर मेरे अंदर कौन सी शक्तियाँ समाहित हैं, मैं इन सब प्रश्नों के उत्तर जानना चाहती हूं। इसलिए आप मुझे उस जगह  लेकर चलो जिस जगह के स्वप्न मुझे हर समय दिखाई देते हैं और जिन प्रश्नों का उत्तर मेरे पास नहीं है, तब कदम्भ लक्षणा की इच्छा सुन लक्षणा को उसके जगह की ओर ले जाता है।
आखिर वो कौन सी जगह है जो लक्षणा के स्वप्न में लक्षणा को दिखाई देती है??

क्रमशः.....

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